वायु प्रदूषण में सुधार के लिए प्रदूषण कारकों के उपयोग पर एक सप्ताह का प्रतिबंध का क्या असर
दिल्ली ब्यूरो: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण में सुधार के लिए प्रदूषण कारकों के उपयोग पर एक सप्ताह का प्रतिबंध का क्या असर पड़ सकता है? यह प्रश्न बहुत ही है, क्योंकि यह क्षेत्र लगभग पूरे वर्ष ‘वायु प्रदूषण के उच्च स्तर’ के प्रभाव में रहता है। और इस प्रश्न का जवाब है कि यह प्रमुख वायु प्रदूषकों में से एक प्रदूषक, पीएम2.5 के स्तर को लगभग आधा कर सकता है और हम सभी के लिए हवा को अधिक सांस लेने योग्य बना सकता है। वायु गुणवत्ता निगरानी निकायों द्वारा एकत्र किए गए नवीनतम आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि एनसीआर के प्रमुख स्थानों में पीएम2.5 के स्तर में केवल एक सप्ताह में ही उल्लेखनीय कमी आ गई।
एक्यूआईसीएन डॉट ऑर्ग (aqicn.org) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 12 से 19 नवम्बर के सप्ताह के दौरान फरीदाबाद, गाजियाबाद और नोएडा में पीएम2.5 स्तर क्रमशः 45.8, 46.4 और 38.9 प्रतिशत कम था। एक्यूआईसीएन डॉट ऑर्ग एक नॉन-प्रॉफिट प्रोजेक्ट है, जो 130 से अधिक देशों और 2000 प्रमुख शहरों से वायु गुणवत्ता संबंधी डेटा एकत्र करने का कार्य करता है। इसके अलावा, इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) – एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में वायु प्रदूषण को रोकने के उपायों की निगरानी के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा स्थापित एक एक्जिक्यूटिव बॉडी है जिसने 16 नवम्बर को एनसीआर में प्रमुख प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक आदेश पारित किया था। ।
सीएक्यूएम ने अपने आदेश में कहा था कि “एनसीआर में ऐसे सभी उद्योगों को संबंधित सरकारों द्वारा तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाएगा, जो ऐसे ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनके इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है। एनसीआर में गैस कनेक्टिविटी वाले स्थानों में लगे सभी उद्योगों को तुरंत गैस आधारित कर दिया जाएगा।” आदेश में यह भी कहा गया है कि दिल्ली के 300 किमी के दायरे में स्थित 11 ताप विद्युत संयंत्रों में से केवल पांच – एनटीपीसी, झज्जर; महात्मा गांधी टीपीएस, सीएलपी झज्जर; पानीपत टीपीएस, एचपीजीसीएल; नाभा पावर लिमिटेड टीपीएस, राजपुरा और तलवंडी साबो टीपीएस, मनसा – 30 नवम्बर तक चालू रहेंगे।
वायु प्रदूषण को कम करने के उपायों को लागू करने के लिए एनसीआर राज्यों को निर्देश देते हुए, आदेश में आगे कहा गया है कि रेलवे, रक्षा और राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं को छोड़कर, निर्माण और तोड़-फोड़ की सभी गतिविधियों को 21 नवम्बर तक रोक दिया जाना चाहिए।
प्रतिबंध के बाद, दिल्ली में भी वायु गुणवत्ता निगरानी स्थानों में पीएम2.5 के स्तर में महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई। ओखला ने पीएम2.5 स्तर में सबसे अधिक 38.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की, झिलमिल, वजीरपुर और नरेला ने क्रमश: 32.8, 31.3 और 27.2 प्रतिशत की कमी दर्शायी। ये स्थान दिल्ली में सर्वाधिक औद्योगिक गतिविधियों वाले स्थानों में शामिल हैं।
16 नवम्बर को प्रतिबंध से पहले, फरीदाबाद, गाजियाबाद, नोएडा में वायु गुणवत्ता को ‘खतरनाक’ श्रेणी में रख दिया गया था, और तब से यह लगातार ‘स्वास्थ्य के लिए बहुत खराब’ श्रेणी में ही बना हुआ है और कुछ दिनों में ‘स्वास्थ्य के लिए खराब’ स्तर को छू गया है।
इस बीच, सूत्रों ने बताया कि सीएक्यूएम स्थिति की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है और इस पर फैसला ले सकता है कि प्रतिबंध को 30 नवम्बर से आगे बढ़ाया जाए या नहीं।
राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण की स्थिति को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर में सभी निर्माण गतिविधियों पर 24 नवम्बर को फिर से प्रतिबंध लगा दिया। केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों पर शीर्ष अदालत को अपडेट करते हुए, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया था कि श्रेणीबद्ध कारवाई के लिए एक योजना तैयार की गई है जिसके अनुसार परिवेशी वायु प्रदूषण के बिगड़ते स्तर के आधार पर उत्तरोत्तर उपायों की पहचान की जाती है। जिसके बाद कोर्अ ने सीएक्यूएम को मेट्रोलॉजिकल डेटा और सांख्यिकीय मॉडलिंग क्षेत्र की जानकारी रखने वाली विशेषज्ञ एजेंसियों के साथ जुड़ने का निर्देश दिया ताकि मौसमी बदलावों और अन्य मापदंडों के कारण अग्रिम रूप से किए जाने वाले उपायों पर निर्णय लिया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि “वैज्ञानिक मॉडल उपलब्ध हो जाने के बाद, जो हवा के वेग के साथ-साथ प्राकृतिक और मानव निर्मित घटनाओं को ध्यान में रखता है, वायु की गुणवत्ता बिगड़ने की प्रतीक्षा किए बगैर, हवा की गुणवत्ता में पूर्वानुमानित परिवर्तनों के आधार पर, पहले से किए जा रहे उपायों के लिए वर्गीकृत प्रतिक्रिया योजना (ग्रेडेड रिस्पॉन्स प्लान) को संशोधित किया जा सकता है। इस आधार पर, निकट संभव भविष्य में वायु प्रदूषण के पूर्वानुमानित स्तरों के आधार पर, कम से कम एक सप्ताह पहले और उससे भी पहले उठाए जाने वाले कदमों की योजना बनाई जा सकती है। आयोग एक महीने के भीतर उपरोक्त अभ्यास को पूरा करेगा और इस निर्देश के अनुपालन के लिए उठाए गए कदमों की रिपोर्ट करेगा।