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माननीय राज्यपाल ने आली ट्रस्ट द्वारा ‘बाल विवाह’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में भाग लिया

राज्यपाल महोदय ने बाल विवाह उन्मूलन हेतु आली संस्था से जुड़कर कार्य करने वाली तीन बालिकाओं श्वेता कुमारी, पलामू, सपना कुमारी, गढ़वा एवं गीता कुमारी, देवघर को 2-2 लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की

माननीय राज्यपाल श्री रमेश बैस ने एसोसियेशन फॉर अडवोकेसी एंड लीगल इंसेंटिव्स ट्रस्ट (आली) द्वारा होटल बीएनआर चाणक्या में ‘बाल विवाह’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में भाग लिया

राज्यपाल महोदय ने बाल विवाह उन्मूलन हेतु आली संस्था से जुड़कर कार्य करने वाली तीन बालिकाओं श्वेता कुमारी, पलामू, सपना कुमारी, गढ़वा एवं गीता कुमारी, देवघर को 2-2 लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की।

‘बेटा-बेटी एक समान’, हमारा मंत्र होना चाहिये।-माननीय राज्यपाल

Honorable Governor participated in the discussion organized by Aali Trust on the topic 'Child Marriage'

आरती कुमारी की रिपोर्ट,रांची: अगर समाज शिक्षित हो जाएगा तो बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई अपने-आप ही समाप्त हो जायेगी। बाल विवाह जैसी कुप्रथा को दूर करने के लिये समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक होने की आवश्यकता है।
एसोसियेशन फॉर अडवोकेसी एंड लीगल इंसेंटिव्स ट्रस्ट (आली) द्वारा ‘बाल विवाह’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में माननीय राज्यपाल महोदय के सम्बोधन के मुख्य बिन्दु:-

 आली द्वारा ‘बाल विवाह’ जैसे गंभीर विषय पर आयोजित इस परिचर्चा कार्यक्रम में मुझे आप सभी के बीच आकर अपार खुशी हो रही है।

 बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है जो किसी परिवार या किसी बालिका के लिए व्यक्तिगत दंश तो है ही, समग्र समाज की उन्नति में भी बाधक है। दुनिया के हर शिक्षित और सभ्य समाज में बाल विवाह को एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जाता है।

Honorable Governor participated in the discussion organized by Aali Trust on the topic 'Child Marriage'

 बाल विवाह के मुख्य कारण आयु घटक, असुरक्षा, शिक्षा व समाजीकरण का आभाव, महिला सशक्तिकरण में बाधा, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे इत्यादि हैं।

 बाल विवाह बेहद चिंताजनक कुरीति व अभिशाप है, जो बचपन खत्‍म कर देता है और खासकर लड़कियों की ज़िंदगी को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यह बच्‍चों की शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और संरक्षण पर नकारात्‍मक प्रभाव डालता है। बाल विवाह का सीधा असर न केवल लड़कियों पर, बल्कि उनके परिवार और समुदाय पर भी पड़ता है।

 जब किसी की शादी कम उम्र में होती है, अक्सर उसके स्‍कूल से ड्रॉप-आउट अथवा निकल जाने की संभावना बढ़ जाती है। खुद नाबालिग होते हुए भी वे संतान को जन्म देती हैं। कम उम्र में लड़कियों के माँ बनने से माँ और बच्चे, दोनों के जीवन को खतरा होता है।

 मुझे कहते हुए बहुत पीड़ा हो रही है कि जिन लड़कियों की उम्र पढ़ने एवं खेलने की होती है, समाज की गलत सोच के कारण उनको शादी के बंधन में बाँध दिया जाता है। विडम्बना है कि यह निंदनीय प्रथा देश के प्रायः सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में, बिना किसी रोक-थाम के प्रचलन में है।

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 शिक्षा का अधिकार अधिनियम 14 वर्ष की आयु तक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है। शोध से ज्ञात होता है कि यदि किसी बच्चे को 15 वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ना पड़ता है तो कम उम्र में उसकी शादी होने की संभावना काफी प्रबल हो जाती है।
 घरेलू जिम्मेदारियों के कारण प्रायः बाल वधुओं को अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि यदि घर की महिला शिक्षित होती है तो वह अपने पूरे परिवार को शिक्षित करती है।

 चूँकि बाल वधू अपनी शिक्षा पूरी करने में सक्षम नहीं होती हैं, वह प्रायः परिवार के अन्य सदस्यों पर आश्रित रहती है, जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक बड़ी बाधा है।

 हर परिवार चाहता है कि उन्हें बहु पढ़ी-लिखी मिले, लेकिन बेटियों को पढ़ाने को तैयार नहीं है। अगर हम बेटी को पढ़ा नहीं सकते तो शिक्षित बहु की उम्मीद करना अनुचित है।

Honorable Governor participated in the discussion organized by Aali Trust on the topic 'Child Marriage'

 आप सब जानते हैं कि महिलाओं को उचित अवसर प्राप्त होने पर उन्होंने अपनी प्रतिभा एवं कार्यों से पूरे राष्ट्र को गौरवान्वित किया है। हम सभी को उनकी उपलब्धियों पर गर्व है।

 अगर समाज शिक्षित हो जाएगा तो बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई अपने-आप ही समाप्त हो जायेगी। बाल विवाह जैसी कुप्रथा को दूर करने के लिये समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक होने की आवश्यकता है।

 देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून एक शक्तिशाली तंत्र है, शादी के लिए वैध उम्र की सीमा तय है। बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार और नागरिक संगठनों को मिलकर काम करने की जरूरत है। जन-सहयोग के बिना बाल विवाह जैसी कुप्रथा व समाज को हानि पहुंचाने वाली अनुचित रीति का अंत संभव नहीं है।

 बालिकाओं के सशक्तीकरण के लिए बेहद जरूरी है कि उनका विवाह कानूनी उम्र के बाद हो, उनके स्वास्थ्य एवं पोषण की दिशा में ध्यान दिया जाय, वे शिक्षा हासिल करें और उनके अंदर निहित हुनरों का विकास हो।

 वर्ष 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम भारत में बाल विवाह की कुप्रथा को प्रतिबंधित करता है।

 विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत महिलाओं और पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 वर्ष और 21 वर्ष निर्धारित की गई।

 बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929) की कमियों को दूर करने के लिए लागू किया गया था।

 भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समानता, भेदभाव रहित और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है। बाल विवाह इन अधिकारों का पूरी तरह हनन करता है। एक आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2020 से जून 2020 के बीच लॉक डाउन के पहले चार महीनों में भारत में बाल विवाह के कुल 5,214 मामले दर्ज हुए।

 इस सामाजिक कुरीति का कारण दहेज-प्रथा व लड़कियों के प्रति कुछ लोगों में गलत सामाजिक सोच भी है। इस तथ्य के बावजूद कि भारत में दहेज को पाँच दशक पूर्व ही प्रतिबंधित कर दिया गया है, दूल्हे या उसके परिवार द्वारा दहेज की मांग करना एक आम प्रथा बनी हुई है।

 ‘बेटा-बेटी एक समान’, हमारा मंत्र होना चाहिये। सबको समझना होगा कि ‘बेटी जन्म नहीं लेगी, तो बहु कहाँ से आयेगी।‘ इसलिए हर किसी को सामूहिक जिम्मेदारी के साथ संवेदनशील एवं जागरूक होना होगा।

 बाल विवाह का बाल वधुओं के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे न तो शारीरिक रूप और न ही मानसिक रूप से किसी की पत्नी अथवा किसी की माता बनने के लिए तैयार नहीं होती हैं।

 शोध के मुताबिक, 15 वर्ष से कम आयु की लड़कियों में मातृ मृत्यु का जोखिम सबसे अधिक रहता है।

 इसके अलावा बाल वधुओं पर हृदयघात, मधुमेह, कैंसर और स्ट्रोक आदि का खतरा 23 प्रतिशत अधिक होता है। साथ ही वे मानसिक विकारों के प्रति भी काफी संवेदनशील होती हैं।

 बाल विवाह जैसी कुप्रथा का उन्मूलन सतत विकास लक्ष्य-5 का हिस्सा है। यह लैंगिक समानता प्राप्त करने तथा सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाने से संबंधित है।

 लड़कियों को प्रायः सीमित आर्थिक भूमिका में देखा जाता है। महिलाओं का काम घर तक ही सीमित रहता है और उसे भी कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता है।

 कम आयु में विवाह करने वाले बच्चे प्रायः विवाह के दायित्वों को समझने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण प्रायः परिवार के सदस्यों के बीच समन्वय का अभाव देखा जाता है।

 कम आयु में विवाह करने से लड़कियाँ अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित हो जाती हैं। ‘बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ में उल्लिखित बुनियादी अधिकारों में शिक्षा का अधिकार और यौन शोषण से सुरक्षा का अधिकार आदि शामिल हैं।

 मुझे खुशी है कि आज का यह कार्यक्रम ‘बाल विवाह’ जैसे गंभीर व महत्वपूर्ण विषय पर है। यह देखकर प्रसन्नता हो रही है कि हमारे राज्य में बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति के उन्मूलन के लिए युवतियाँ इस अभियान का नेतृत्व कर रही हैं, इस प्रकार के मुहिम की मैं सराहना करता हूँ।

 बाल विवाह को रोकने के लिए एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। बालिकाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। रूढ़िवादी सोच को जड़ से ख़त्म कर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि विभिन्न अधिकारों के प्रति लड़कियों को भी जागरूक करना होगा।

 मैं मानता हूँ कि राज्य में ऐसी बातें होती हैं कि अपराध होता है परंतु प्राथमिकी दर्ज नहीं होता है, टालने की कोशिश होती है। मैं राज्य में आने के बाद प्रशासन में चुस्ती लाने का प्रयास कर रहा हूँ। मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक को बुलाकर निरंतर परामर्श देता हूँ। मैंने थाना में प्राथमिकी दर्ज नहीं करने वाले अधिकारियों को निलंबित करने हेतु कहा है।

 राज्य के विकास के प्रति मैं प्रतिबद्ध हूँ। मैं राज्य के विकास हेतु विभिन्न अधिकारियों को समय-समय बुलाकर उनका निरंतर मार्गदर्शन करता हूँ।

 एक बार पुनः आली को इस प्रकार के कार्यक्रम के आयोजन हेतु बधाई व शुभकामनाएं।

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