विश्वकर्मा पूजा की पौराणिक कथा और महत्व, जानिए क्यों की जातीहै विश्वकर्मा पूजा

शिल्प के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती आज मनाई जा रही है। इस दिन विशेष तौर पर औजार, निर्माण कार्य सेजुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों, मोटर गैराज, वर्कशॉप, लेथ यूनिट, कुटीर एवं लघु इकाईयों आदि में भगवान विश्वकर्माकी पूजा की जाती है।

दिल्ली ब्यूरो : आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को विश्वकर्मा पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन हीऋषि विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इस साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। इस दिन भगवानविश्वकर्मा के साथ ही कारखानों और फैक्ट्रियों में औजारों की पूजा की जाती है।

जानिए क्यों की जाती है विश्वकर्मा पूजा

पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि को संवारने की जिम्मेदारी ब्रह्मा जी ने भगवान विश्वकर्मा को सौंपी। ब्रह्मा जी को अपनेवंशज और भगवान विश्वकर्मा की कला पर पूर्ण विश्वास था। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो वह एकविशालकाय अंडे के आकार की थी। उस अंडे से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई। कहते हैं कि बाद में ब्रह्माजी ने इसे शेषनाग कीजीभ पर रख दिया।

शेषनाग के हिलने से सृष्टि को नुकसान होता था। इस बात से परेशान होकर ब्रह्माजी ने भगवान विश्वकर्मा से इसकाउपाय पूछा। भगवान विश्वकर्मा ने मेरू पर्वत को जल में रखवा कर सृष्टि को स्थिर कर दिया। भगवान विश्वकर्मा कीनिर्माण क्षमता और शिल्पकला से ब्रह्माजी बेहद प्रभावित हुए। तभी से भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियरऔर वास्तुकार मनाते हैं। भगवान विश्वकर्मा की छोटी से छोटी दुकानों में भी पूजा की जाती है।

विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त

17 सितंबर को सुबह छह बजकर 7 मिनट से 18 सितंबर सुबह तीन बजकर 36 मिनट तक योग रहेगा। 17 को राहुकालप्रात: दस बजकर 30 मिनट से 12 बजे के बीच होने से इस समय पूजा निषिद्ध है।  बाकी किसी भी समय पूजा कर सकतेहैं।

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