करीम सिटी कॉलेज जमशेदपुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अंतर्विषयक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल उपस्तिथ हुए

करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर द्वारा ‘आर्थिक विकास में कृषि और ग्रामीण विकास की भागीदारी और हिस्सेदारी’ पर राष्ट्रीय अंतर्विषयक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल-सह- झारखण्ड राज्य के विश्वविद्यलयों के कुलाधिपति महोदय का सम्बोधन

करीम सिटी कॉलेज जमशेदपुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अंतर्विषयक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल उपस्तिथ हुए

दिनांक 4 जनवरी, 2023 को करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर द्वारा ‘आर्थिक विकास में कृषि और ग्रामीण विकास की भागीदारी और हिस्सेदारी’ पर राष्ट्रीय अंतर्विषयक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल-सह- झारखण्ड राज्य के विश्वविद्यलयों के कुलाधिपति महोदय का सम्बोधन:-

आरती कुमारी की रिपोर्ट,रांची: सर्वप्रथम, आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं। आज करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर द्वारा आयोजित इस सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में आप सभी के बीच आकर खुशी हो रही है। कृषि एवं ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण विषय से जुड़े पहलुओं पर इस सम्मेलन के आयोजन के लिए सभी आयोजकों को बधाई देता हूँ। मुझे बताया गया है कि करीम सिटी कॉलेज की दशकों पुरानी विरासत है। इस शिक्षण संस्थान की नींव राज्य विभाजन के पूर्व ही रखी गई थी और यह संस्थान यहाँ के विद्यार्थियों को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। आज यहाँ ‘आर्थिक विकास में कृषि और ग्रामीण विकास की भागीदारी और हिस्सेदारी’ पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन बहुत ही प्रासंगिक है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। भारत को उस समय सोने की चिड़िया कहा जाता था जब वैश्विक व्यापार एवं निर्यात में भारत का बोल-बाला था। उस समय भारत की कृषि क्षेत्र में उत्पादकता अपने चरम पर थी एवं कृषि उत्पाद विशेष रूप से मसाले आदि भारत से लगभग पूरे विश्व में भेजे जाते थे। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के बाद भारत कृषि उत्पादन में अपनी आत्मनिर्भरता खो बैठा। खुशी है कि आजादी के समय खाद्यान्न की कमी का सामना करने वाला भारत अब ‘आत्मनिर्भर भारत’ बन दुनिया के कई देशों में खाद्यान्न फिर से निर्यात कर रहा है। कृषि नवाचार ने भारत के खाद्यान्न के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। सरकार की सकारात्मक नीतियों के कारण कृषि क्षेत्र में निरन्तर सुधार हो रहा है और किसानों की आय में वृद्धि के व्यापक प्रयास हो रहे हैं। संसार के सभी देशों में विकास कृषि के विकास के बाद ही संभव हुआ है। इसलिए औद्योगिक विकास कृषि के विकास पर ही निर्भर है। भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कृषि के विकास को साथ लेकर चलना ही पड़ेगा।

ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों के लिए स्वयं सहायता समूह भी विकसित किए गए हैं और रोजगार के अधिकतम नए अवसर अब गैर कृषि आधारित क्षेत्रों में निर्मित हो रहे हैं। हमारे देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनाए रखने में कृषि और ग्रामीण विकास की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिए कुटीर उद्योग तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को ग्राम स्तर पर ही अधिक से अधिक शुरू करने की ज़रूरत है। इससे इन गांवों में निवास करने वाले लोगों को ग्रामीण स्तर पर ही रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का हमेशा एक आधारभूत स्तंभ रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज हमारा कृषि क्षेत्र कई समस्याओं से जूझ रहा है। सिंचाई संबंधी सुविधाओं के अभाव कारण मानसून पर निर्भरता, छोटे एवं सीमांत जोत की समस्या, बाजार एवं प्रौद्योगिकी व तकनीक का अभाव के साथ जलवायु परिवर्तन तथा रासायनिक खादों का प्रयोग के कारण भारतीय कृषि में कुछ समस्याएँ हैं।

आज जब ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात होती है, तो सबसे पहले हमें देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाए जाने की ज़्यादा जरूरत दिखती है। देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंचाने में कृषि एवं ग्रामीण विकास क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए किसानों को न केवल अपने उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करना होगा बल्कि अपनी उत्पादकता में भी वृद्धि करनी होगी। किसानों को अब ये भी समझना पड़ेगा कि कृषि क्षेत्र में निर्यात बढ़ाने के लिए ऑर्गेनिक खेती के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप ही कृषि उत्पादन करने की ज़रूरत है। गाँव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गांधी जी के सपनों को साकार करना पड़ेगा। पूर्व में गांव की अर्थव्यवस्था कुटीर उद्योग पर आधारित थी। लोग अपनी जरूरतों को गांव में ही पूरा कर लेते थे। बुनकर से कपड़ा, बढ़ई से औजार, लोहार से हल, कोल्हू से तेल और मोची से जूता की जरूरतों को पूरा कर लेते थे और किसान लोगों के लिए अनाज का उत्पादन करते थे। इस प्रकार अर्थव्यवस्था का रोटेशन गांव में भी होता था। धीरे-धीरे शहर पर निर्भरता बढ़ती चली गई और गांव की अर्थव्यवथा प्रभावित होने लगी। हमें गांव एवं ग्रामीणों की स्थिति को समझना होगा एवं भविष्य को भी देखना होगा। बढ़ती जनसंख्या के लिए गांव की जमीनों का भी उपयोग किया जाने लगा है। हमें बढ़ती आबादी के लिए जमीन के उपयोग एवं भविष्य में बढ़ती जनसंख्या के लिए अन्न उत्पादन हेतु आवश्यक जमीन के बीच सामंजस्य स्थापित करना पड़ेगा।

आज किसान किसानी करना नहीं चाहते हैं, क्योंकि किसानी उनके लिए स्थाई आय का स्रोत नहीं है। अनावृष्टि हुआ तो मुश्किल। अतिवृष्टि हुआ तो मुश्किल। और लहलहाते खेत में कीड़ा लग गया तो मुश्किल। हमें उनकी मुश्किलों को समझना होगा और उसे दूर करने के लिए हर सम्भव प्रयास करना होगा। किसान समृद्ध होंगे तभी देश समृद्ध होगा। ग्रामीण गैर-कृषि गतिविधियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विविधता लानी होगी। मशीनीकरण और कृषि-अनुसंधान कृषि उत्पादकता को बढ़ा तो सकते हैं लेकिन हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और भी मजबूत एवं लाभकारी बनाने के बारे में सोचना होगा तथा कृषि उत्पादों को बड़े बाज़ारों तक पहुँचाना होगा। ग्रामीण विकास में कृषि के अलावा भी कई लघु उद्योग एवं कलात्मक उत्पाद देखने को मिलते हैं जिन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाने पर हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बहुत लाभ हो सकता है। मैं समझता हूं कि विश्वविद्यालय ऐसे उद्योग और बाजार की संभावनाओं वाले उत्पाद की पहचान करने में ग्रामीणों की मदद कर सकते हैं।

हमें यह भी देखना होगा कि जिन फसलों को किसान बोना चाहते हैं, उनके लिए आवश्यक जलवायु, पानी, मिट्टी आदि कैसा होना चाहिए। इसका परीक्षण कर संबंधित किसानों को शिक्षित करना होगा ताकि वह सुझाव अनुसार कार्य करने के लिए सहमत हो सके।
हमें यह भी समझना होगा कि टेक्नोलॉजी ने कृषि के क्षेत्र में उत्पादन और व्यापारिक जटिलता दूर करने में, बाजार के संबंधों को मजबूत करने में और कृषि प्रबंधन को बेहतर बनाने में मदद की है। आज भी किसान तकनीक का उपयोग करके अपनी आय बढ़ाने के अलावा फसल की विफलता के जोखिम को कम कर सकते हैं। इसलिए व्यापक स्तर पर कृषि विकास नीति में तकनीक के उपयोग को बढ़ाने पर बल देना चाहिए। आज के समय में एग्री स्टार्टअप हमारे युवाओं के लिए एक अच्छा अवसर पैदा कर सकता है। किसानों को बड़े बाजार से जोड़ने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। डिजिटल तकनीक को किसानों के उत्पाद और बाज़ार से जोड़ने पर चमत्कारिक परिवर्तन देखे जा सकते हैं।

अब जो चुनौती हमारे सामने हैं वह है एक सतत, समावेशी और जिम्मेदारी युक्त कृषि उत्पादन एवं प्रबंधन की। यह तभी संभव है जब सभी हितधारक सतत विकास लक्ष्य के प्रति अपनी नीतियों और कार्यों से आगे बढ़े। नाबार्ड कृषि क्षेत्र में और अच्छा कार्य कर जनमानस के हृदय में अपना स्थान हासिल करें। मैं उनके अधिकारियों से कहूँगा कि वे किसानों को नई-नई तकनीकों से खेती करने में अपना पूरा सहयोग दें और किसानों की दिन-प्रतिदिन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहें। वर्तमान में ग्रामीण पर्यटन भी तेज गति से बढ़ रहा है क्योंकि देश के शहरों में पर्यावरण की स्थिति दिनोंदिन बहुत बिगड़ती जा रही है एवं भारत के ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त हरियाली के चलते शुद्ध हवा उपलब्ध है। इस पर भी आप लोगों को कार्य करने की आवश्यकता है। कृषि और ग्रामीण विकास को विकसित करने के लिए आप सभी उसके विभिन्न पहलुओं पर व्यापक चर्चा करें एवं अच्छे और सकारात्मक सुझाव सरकार को दें। इससे कॉन्फ्रेंस की सार्थकता सिद्ध होगी। एक बार पुनः आयोजकों को इस सम्मेलन के आयोजन के लिए बधाई।

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