उत्तर प्रदेश ब्यूरो : हालांकि, वाराणसी की मेरी यात्रा की वजह इन सबसे बिल्कुल अलग थी. मैं वहां काल का सामनाकरने या अपनी आत्मा शुद्ध करने नहीं गई थी. इसके बजाय, शहर के अनोखे शाकाहारी व्यंजनों का आनंद लेने के लिएमैंने यहां की यात्रा की.
शहर के व्यस्त सड़कों से गुज़रते हुए ड्राइवर और बेहतरीन किस्सागो राकेश गिरी ने मुझे बताया कि हिंदू मान्यताओं केअनुसार कैसे ब्रह्मांड का संहार करने वाले भगवान शिव ने प्राचीन काल में वाराणसी की स्थापना की. वाराणसी में रहनेवाले अधिकतर लोगों की तरह राकेश गिरि भी एक उत्साही शैव (शिव भक्त) हैं. और चूंकि शिव के भक्त मानते हैं किउनके भगवान शाकाहारी हैं, इसलिए वो और वाराणसी के अधिकतर लोग सात्त्विक (शुद्ध शाकाहारी) भोजन करते हैं.
राकेश गिरी ने बताया, “मैं और मेरा परिवार कई पीढ़ियों से शुद्ध शाकाहारी है. जो लोग अंडे खाते हैं, उनके घरों में हमपानी पीने से भी मना कर देते हैं.”
वाराणसी भले ही भारत की आध्यात्मिक राजधानी हो, पर खाने–पीने के शौकीनों को अपने यहां लुभाने के लिए यह शहरजाना नहीं जाता. खाने–पीने के शौकीन लोग वाराणसी जाने से पहले देश में खानपान के मशहूर गढ़ जैसे दिल्ली, कोलकाता या चेन्नई जाना पसंद करते हैं. लेकिन दुनिया भर के शेफ़ अब वाराणसी की खान–पान की विरासत से प्रेरित होरहे हैं और अपने रेस्तरां में यहां के व्यंजन तैयार कर रहे हैं.
शाकाहारी भोजन का खज़ाना बढ़ाने में जुटे लोग
ऐसे लोगों में शेफ़ विकास खन्ना भी हैं. खन्ना को मैनहट्टन के उनके रेस्त्रां ‘जूनून‘ के लिए 2011 से 2016 के दौरान हरसाल एक मिशेलिन–स्टार सम्मान (अच्छे प्रदर्शन के लिए संस्थाओं को मिलने वाला एक तरह का सम्मान) मिला है.
उन्होंने बताया कि वो वाराणसी के एक मंदिर में परोसे जाने वाले ‘व्रत के कुट्टू‘ (कुट्टू के आटे से तैयार पुआ) खाकर दंग रहगए थे. खन्ना ने 2020 में ट्रैवल मैगज़ीन ‘लोनली प्लैनेट‘ को बताया, “मैंने मैनहट्टन की अपनी रसोई में इसे फिर से बनानेका बेहतरीन प्रयास किया. इसका स्वाद लाजवाब लगा.”
वहीं दो बार के मिशेलिन–स्टार शेफ़ अतुल कोच्चर ने लंदन में एक आधुनिक भारतीय रेस्त्रां खोला है. कोच्चर ने इसकानाम बनारस (वाराणसी का पुराना नाम) रखा है. इन्होंने इसी नाम की अपनी कुकबुक में चने के पुए और टमाटर के सलादजैसी शाकाहारी फ्यूजन रेसिपी के बारे में लिखा है.
भारत के मशहूर शेफ़ संजीव कपूर ने भी वाराणसी के बेहतरीन शाकाहारी व्यंजनों की अपनी पसंद के बारे में लिखा है.
बेशक़ ऐसे देश में जहां 80 प्रतिशत लोग हिंदू और 20 प्रतिशत लोग शाकाहारी हैं, वहां शाकाहारी भोजन आसानी सेउपलब्ध हैं. हालांकि वाराणसी के शाकाहारी व्यंजनों के मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि इसकी सात्त्विक औरशाकाहारी खूबियां आयुर्वेद और अध्यात्म की भावना से सीधे तौर पर प्रभावित हैं.
शाकाहारी भोजन ही क्यों?
सात्त्विक खानपान आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित है और ये सनातन धर्म द्वारा निर्धारित शाकाहार के सख़्त मानकों कापालन करता है. जैसे खाना पकाने में प्याज़ और लहसुन के उपयोग की मनाही है. माना जाता है कि इसके सेवन से क्रोधऔर आक्रामकता जैसी कई चीज़ों को बढ़ावा मिलता है.
वाराणसी के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के एक पुजारी अभिषेक शुक्ला ने बताया, “वाराणसी में लगभग हर हिंदू घर मेंशिव को समर्पित एक वेदी है. घर में मीट खाना सोच से भी परे है.”
वो कहते हैं, “मोक्ष चाहने वालों के लिए सात्त्विक बने रहना एक प्राथमिकता है. हमारा मानना है कि भोजन के लिए हमजिन्हें मारते हैं, हमारी आत्मा भी उनकी ही तरह पीड़ित होगी. मीट, प्याज़ और लहसुन खाने से तामसिक गुण बढ़ते हैं. इससे ध्यान करना और सही निर्णय लेना कठिन हो जाता है.”
परंपरागत तौर पर, वाराणसी के कई रेस्त्रां पश्चिमी देशों के पर्यटकों और मीट खाने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों के लिएमांसाहारी खाना बनाते रहे हैं, जबकि स्थानीय सात्त्विक व्यंजन मुख्य रूप से घरों में ही खाए जाते रहे हैं.
2019 के फ़ैसले से शाकाहार को मिला बढ़ावा
हालांकि बीजेपी प्रदेश सरकार ने 2019 में एक फ़ैसला लिया जिसके तहत वाराणसी के सभी मंदिरों और विरासत स्थलोंके 250 मीटर के दायरे में मीट की बिक्री और खपत पर रोक लगा दी गई.
इस फ़ैसले ने रेस्त्रां को वहां के स्थानीय शाकाहारी और सात्त्विक व्यंजन बेचने को प्रोत्साहित किया. ऐसे व्यंजन वाराणसीके घरों में तो पीढ़ियों से बन रहे थे, पर यहां आने वाले पर्यटकों के लिए ये पहले उपलब्ध नहीं थे.
गंगा के किनारे मुंशी घाट पर बलुआ पत्थर से बने भव्य लग्ज़री होटल बृजराम पैलेस में उनके शेफ़ मनोज वर्मा वाराणसीका खाना बनाने में अपने पारंपरिक ज्ञान क इस्तेमा करते हैं. उन्होंने बताया, “जब मैंने पहली बार रसोई संभाली, तो मैंनेअपने मेन्यू में तुरंत ‘खट्टा मीठा कद्दू‘ और ‘निमोना‘ (मटर का मसालेदार भर्ता) जैसे व्यंजनों को शामिल किया.” वर्मा नेकहा, “ये ऐसे व्यंजन हैं, जिन्हें न खिलाएं तो हमारे मेहमानों को इसे चखने का मौक़ा शायद ही कभी मिल पाए.”
वर्मा ने ये भी दिखाया कि निमोना आख़िर बनता कैसे है. कड़ाही के गर्म तेल में साबुत जीरा, हींग और हरी मिर्च जैसेसुगंधित मसालों का मिश्रण तैयार करने के बाद उसमें हरी मटर का भर्ता और उबला हुआ आलू डालकर इसे तैयार कियाजाता है. और फिर इसे घी और बासमती चावल के साथ खाने वालों को परोसा जाता है.
मटर की मिठास और आलू का स्वाद लिए यह व्यंजन असल में इटली के ‘कुचिना पोवेरा‘ को वाराणसी का जवाब है. यहांके नए रसोइये स्थानीय किसानों के खानपान को नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं.
वर्मा ने बताया कि 2019 में मीट पर लगी रोक ने वाराणसी की नई पीढ़ी के रसोइयों की रचनात्मकता को बढ़ाया है. हालांकि उन्होंने कई मशहूर भारतीय और विदेशी मेहमानों को खिलाया है, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा मौक़ा तब आयाजब शेफ़ विकास खन्ना उनके भोजन का स्वाद लेने आए. खाने के बाद मिशेलिन–स्टार शेफ़ ने झुककर वर्मा के पैर छूलिए. वर्मा ने बताया कि वो उस पल को कभी नहीं भूलेंगे.
तेज़ी से खुले नए शाकाहारी रेस्त्रां
स्थानीय लोगों के अनुमान के अनुसार, आज वाराणसी में 40 से 200 के बीच सात्त्विक रेस्त्रां हैं. 2019 में मीट पर लगीरोक के बाद इनकी संख्या तेज़ी से वृद्धि हुई है. ऐसे ही नए खुले रेस्त्रां में से एक ‘श्री शिवाय‘ भी है. यहां का मेन्यू स्थानीयबाजार में उपलब्ध चीज़ों के आधार पर दिन में दो बार बदला जाता है.
महीनों की सावधानी के साथ किए गए प्रयोग के बाद यहां के तीन शेफ़ ने एक फॉमूला विकसित किया है. इसके तहत वेकाजू, खसखस, खरबूजे के बीज, टमाटर और चिरौंजी, इन पांच चीजों का इस्तेमाल करके किसी भी सॉस या ग्रेवी केस्वाद की नकल कर सकते हैं.
मेरी थाली में कढ़ी–पकौड़े, राजमा और पनीर परोसे गए थे. कढ़ी में भुने हुए चने के आटे का स्वाद, राजमा सॉस कीचिपचिपाहट और पनीर की ताज़गी सब कुछ अनोखा था. इस तरह के स्वाद को मैंने पूरे उत्तर भारत में कहीं भी अनुभव नहींकिया था.
वाराणसी के स्ट्रीट फूड भी अनूठे
दूसरी ओर वाराणसी के स्ट्रीट फूड की दुनिया भी बैंकॉक या इस्तांबुल की तरह जीवंत और रोमांचक है. लेकिन ये मीडियाके प्रचार से बहुत दूर हैं. यहां बिकने वाले कई शाकाहरी व्यंजनों में भारत में कहीं और मिलने वाले स्नैक्स से ज्यादाविविधताएं हैं, पर इन्हें दिल्ली के चाट या मुंबई के वड़ा पाव के जैसा प्रचार नहीं मिल सका है.
ऐसा ही एक उदाहरण काशी चाट भंडार नाम के एक स्टॉल पर बेची जाने वाली टमाटर चाट है. तीसरी पीढ़ी के मालिकयश खेतड़ी ने बताया, “जब अरबपति उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल की बेटी की शादी फ्रांस में हुई, तो उन्होंने हमें भी एककैटरर्स के रूप में चुना.”
जीरा और चीनी की चाशनी में डूबे टमाटर के भर्ते को तीखे मसालों के साथ बनाया जाता है. इसके ऊपर कुरकुरा सेवडालकर लोगों को खाने के लिए दिया जाता है. इसके मूल नुस्खे को 1968 में यश खेतड़ी के दादा ने विकसित किया था. आज आपको यह वाराणसी के बाहर कहीं और नहीं मिलेगा.
यहां के शाकाहारी खान–पान का एक अन्य उदाहरण ‘लक्ष्मी चाय वाले‘ स्टॉल पर टेराकोटा कप में मलाई टोस्ट के साथपरोसी जाने वाली झागदार मीठी दूध की चाय है. यहां गर्म अंगारों पर ग्रिल्ड ब्रेड के दो स्लाइस पर ताज़ा क्रीम लगाकर उसपर चीनी डाली जाती है.
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